अपनी बेटी के जन्मदिन पर चांद पर प्लॉट खरीदा इस कपल ने। आपको सुनने में हैरानी हो गई पर यह बात सच है एक डॉक्टर को पल्ले अपनी बेटी के 10 वें जन्मदिन पर उसे चांद पर एक प्लॉट गिफ्ट किया जब उनसे पूछा गया कि इसने खुशी का कारण क्या था तो उन्होंने बताया कि 600 वर्ष बाद उनके परिवार में किसी लड़की ने जन्म लिया है तो वह फूली नहीं समा पाए उन्होंने सोच रखा था कि एक न एक दिन अपने बेटे के लिए कुछ ना कुछ बड़ा जरूर करना है इसीलिए जब उनकी बेटी 10 साल की हुई उन्होंने अपनी बेटी के लिए चांद पर प्लॉट खरीद लिया।
बेटी को दसवें जन्मदिन पर दिया यह तोहफा!
यह बात झूठी नहीं बल्कि सच्ची है अब लोग चांद पर भी प्लॉट खरीद सकते हैं डॉक्टर कपल का नाम डॉ सुरेंद्र कुमार झा और औरत का नाम डॉ सुधा झा है सुरेंद्र और सुधा ने बताया कि उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ेगी तब जाकर उन्हें यह प्लॉट मिल पाया है मोनिका उन्होंने पहले तो काफी ज्यादा मेहनत मशक्कत करें कि वह इतने पैसे जोड़ता है कि वह अपनी बेटी को इतना शानदार तोहफा दे पाए साथ ही में यह प्लॉट खरीदने का प्रोसेस आसान नहीं बल्कि बहुत जगजीत होती है इसलिए उन्हें काफी मेहनत मशक्कत के बाद यह प्लॉट मिल पाया सुरेंद्र झा ने बताया कि उनकी बेटी सबसे प्यारी है और उनकी बेटी चांद जितने ही सुंदर है इसीलिए उन्होंने सोचा कि चांद से बेहतर तोहफा तो कुछ हो ही नहीं सकता आज 10 साल की आस्था चांद पर एक प्लॉट है इलाहाबाद कोई मजाक नहीं बल्कि सच्चाई है ।
माता पिता को करनी पड़ी कड़ी मेहनत!
सुधा और सुरेंद्र ने अपनी बेटी को यह चांद के प्लॉट की रजिस्ट्री का सर्टिफिकेट जम्मू कश्मीर के वैष्णो माता मंदिर के दरबार में उनका मानना है कि वैष्णो माता की कृपा रही तो वह ऐसे ही और शानदार तो फिर अपनी बेटी को दे सकते हैं भारत में ऐसी कई जगह है जहां पर आज भी बेटी होने पर लोग रोते हैं कि आखिरकार उन्हें एक पेटी के माता-पिता क्यों बनाया प्रश्न यंत्र और सुधा जैसे माता-पिता उन सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा है जो यह सोचते हैं कि बेटी होना एक शर्मिंदगी की बात है उन्होंने यह दिखा दिया कि बेटा बेटी में कोई अंतर नहीं आपका दोनों के प्रति बराबर होना चाहिए आपको बता दें कि सुधा और स्नेहा का एक बेटा भी है आस्था जो भी सब पांचवी कक्षा में है शायद इस बात को इतनी गहराई से ना समझ पाए पर वह जब भी पढ़ी होंगी तो उन्हें और उन्हें और ज्यादा समझ आएगी तो उन्हें पता चलेगा कि उनके माता-पिता ने कितना गर्व का काम किया है आस्था भाग्यशाली हैं कि उन्हें सुरेंद्र और सुधा जैसे मात-पिता मिले जो अपनी बेटी को अपने सर का ताज मानते हैं।
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